फागुन के गीत ,ढोलक की,थाप ढोल मंजीरे की धुन देती सुनाई
बहु भांति ,कई रूपों में हैं फाग मनाने के ढंग समाज में देते दिखाई
मदिरा ,भांग की घोटाई में व्यस्त नौज़वान देते ढेरों समूह में दिखाई
रंग फैंकते बालक ना दीखते बाज़ारों में ,ना देती अब पिचकारी दिखाई
ना घरों में बनती गुझिया ,समोसे ,पापड़ ,कचरी,ना चडी दिखती कडाई
एकल परिवारों ने समेट दिया सब ,त्यौहार पर पिज़्ज़ा ,बर्गर ने रौनक लगाई
रसोई के पकवानों की जगह अब बंद डिब्बों ने ली ,सुवासित महक सब उड़ाई
त्यौहार मनाने का तरीका ,खानपान सब सिमट गया आधुनिकता की आंधी में ,,,,,
--रोशी
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