सोमवार, 15 जुलाई 2024


 कुदरत ने ढाया कहर गरीब किसान पर ,उसके सपनों पर                                                                                           जो बीजे थे उसने धान के रूप में खेत पर
बच्चों की फुलझरी ,पटाखे ,मिठाई सब टिके थे उन उम्मीदों पर
बच्चों के नए वस्त्र अब ला सकेगा वो त्यौहार पर
बारिश और ओले के कहर ने सब ख्वाब ला गिराए धरती पर
मिनटों में उजड़ गई दुनिया ,आ गिरे सारे मंसूबे मिटटी पर
क्या सपने बुनता है इंसा जोर नहीं किसी का इस पर
पकी फसल की बर्बादी देख स्तब्ध है सारा परिवार
मनेगी कैसे दिवाली ?जब खाने को भी ना बचा घर पर
--रोशी

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