सोमवार, 15 जुलाई 2024

हम मंसूबे बनाते हैं पूरी जिन्दगी के दिन भर
जान नहीं पाते स्वयं की जिन्दगी का पल भर
हवा का एक मामूली सा झोंका पलट देता जिन्दगी की कश्ती का रुख
पल भर में ही किनारे लगते लगते समंदर खींच लेता अपने भीतर
विधना ने है क्या लिखा है भविष्य का लेखा जोखा
राम ,कृष्ण भी ना भांप सके कदापि आने वाले गहन कष्टों पर
सुख दुःख नियति प्रदत्त है ,कर्मानुसार हर प्राडी को जीवन भर
कठपुतली मात्र हैं हम उस रब की अपने सम्पूर्ण जीवन भर

--रोशी


 

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