जीवन जितना सरल,सादा,निर्मल होगा परेशानी ,चिंता का बोझ उतना कम होगा क्यों महानगरों से हम भाग रहे प्रकृति की ओर ,बाकी जीवन जहाँ गुजरेगा
त्रस्त हो चुके हैं हम जीवन की इस अपा -धापी से ,लगता है कुछ ना बदलेगा
खेत खलिहान,बाग़ -बगीचे देते सुकून अब जीवन की सांध्य बेला में सबको
मानसिक ,आंतरिक ख़ुशी मिलती अब देखकर चारों ओर अपने इन सबको
उन्मत्त पर्वत ,निर्मल झरने की कलकल भिगो देती रूह को भीतर तक
शांत वातावरण,पक्षियों का कलरव झूमते पेड़ों का संगीत भिगो देता आत्मा को
स्व चिंतन ,मनन करने का वक़्त मिला अब आकर जिन्दगी में खुद को
--रोशी
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