माँ ने है कितने जतन से ढाला है मौजूदा वजूद हमारा
उल्हाने और प्यार से बनाया ,संवारा जीवन हमारा
जो सीख ,अक्ल ,संस्कार मिले थे हमको बचपन में
आज वो ही दुहराते हैं जस के तस अपने नौनिहालों में
पिता की सख्ती ,मां की डांट गर ना मिलती तो होती है जिन्दगी बेमकसद
उन पत्तों से पूछो जो शाख से जन्मते ही हो जाते हैं अलग ना रहता कोई वजूद
रोशी
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