सोमवार, 15 जुलाई 2024


 स्त्रियाँ बाखूबी जानती हैं चिड़िया की मानिद घोसलें बुनना                                                                                       वे भी तिनका -तिनका सहेजती हैं दिन-रात अपने नीड की खातिर
सबसे सुरक्षित डाल चुनती हैं अपने नौनिहालों की सेहतयाबी की खातिर
दुनिया की आँधियों ,तूफानों से बचाती हैं अपना बेजोड़ बसेरा
सपने बुनती हैं दिन -रात स्वर्णिम भविष्य के ,जो होगा सुनहरा
बचाती हैं घोंसले को अनगिनत बाजों ,गिद्धों से अनवरत दिन रात
कड़ी मशकत्त ,पूरी जान लगा देती हैं बसेरे को महफूज़ रखने में दिन हो या रात
नौनिहालों के जन्मते खुद को न्योछावर कर बैठती हैं भुला के खुद का वजूद
भूखी रह खुद हर मां बाखूबी जानती है नन्हे नौनिहालों का पेट भरना खूब
--रोशी

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