रब की इतनी मेहरबानी रही हम सब पर उसकी अनुपम सौगात दे गया
स्वस्थ काया ,सर पर छत ,थाली में दो वक़्त की रोटी रब की ढेरों मेहर दे गया
कमतरी का रोना हर वक़्त रोते रहते हैं हम ,खुदा की नियामतें देखना सिखा गया
जो मिला जिन्दगी से खैर मनाओ तकलीफों को नज़रंदाज़ करना खूब सिखा गया
खुश होना शायद फितरत ना रही हमारी ,जीने का नज़रिया बदलना सिखा गया
नज़र डाली गुजरे साल पर शुकराना रब का अदा करने का सही वक़्त आ गया
--रोशी
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