सोमवार, 15 जुलाई 2024


साल गुजरने को है आया बेहतरीन यादें,खूबसूरत लम्हे दे गया                                                                               पूरा वर्ष गुजर गया खैरियत से ,अगले वर्ष जीने का मौका दे गया
रब की इतनी मेहरबानी रही हम सब पर उसकी अनुपम सौगात दे गया
स्वस्थ काया ,सर पर छत ,थाली में दो वक़्त की रोटी रब की ढेरों मेहर दे गया
कमतरी का रोना हर वक़्त रोते रहते हैं हम ,खुदा की नियामतें देखना सिखा गया
जो मिला जिन्दगी से खैर मनाओ तकलीफों को नज़रंदाज़ करना खूब सिखा गया
खुश होना शायद फितरत ना रही हमारी ,जीने का नज़रिया बदलना सिखा गया
नज़र डाली गुजरे साल पर शुकराना रब का अदा करने का सही वक़्त आ गया
--रोशी

कोई टिप्पणी नहीं:

                                  दिनचर्या   सुबह उठकर ना जल्दी स्नान ना ही पूजा,व्यायाम और ना ही ध्यान   सुबह से मन है व्याकुल और परेशा...