आंगन गुलज़ार रहता था उनकी भागादौड़ी ,शैतानियों से
आगे -पीछे दौड़ते ,कब दिन ढल जाता इतनी शीघ्रता से
बदलाव होता बहुत जरूरी जिन्दगी के रोज़मर्रा ढर्रे से
जिन्दगी में रंग भर जाते नए कुछ वक़्त अपनों के साथ गुजारने से
--रोशी
हिंदी दिवस के अवसर पर ...हिंदी भाषा की व्यथI ----------------------------------------- सुनिए गौर से सब मेरी कहानी ,मेरी बदकिस्मती खुद मेरी...
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